Hindi class 10th Kavya Khand :- राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा | जो नर दुख में दुख नही मने | इस पोस्ट में गुरु नानक के दोहा से संबंधित महत्वपूर्ण लघु एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न दिया गया है जो BSEB मैट्रिक परीक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण है | hindi class 10th kavya khand guru nanak ka doha | Matric Pariksha Hindi Guru Nanak ka Doha Subjective Question
Class 10th Hindi Ka V.V.I Subjective Question Answer
1.Q ग्रुप की कृपया से किस युक्ति की पहचान हो पाती है
उत्तर ⇒ कभी कहते हैं कि ब्रह्म से शास्त्र कार्य करने हेतु लोभ मोह इस तरह देवर्ष निंदा यादी से दूर होना आवश्यक है ब्रह्म के सानिध्य के लिए सांसारिक विषयों से रहित होना अत्यंत जरूरी है ब्रह्म प्राप्ति की रक्षा युक्ति की पहचान गुरु कृपा से हो पाती है
2.Q वाणी कब विष के समान हो जाती है।
उत्तर ⇒ जिस वाणी से राम नाम का उच्चारण नहीं होता है अर्थात भगवान राम के बिना वाणी विष के समान हो जाती है
3.Q हरि रस के कवि का अभिप्राय क्या है
उत्तर ⇒ कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान के नाम से बढ़कर अन्य कोई धर्म साधना नहीं है भगवंत कीर्तन से प्राप्त परमानंद को हरि रस कहा गया है
4.Q राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा पद का मुख्य भाव क्या है
उत्तर ⇒ गुरु नानक ने इस पद में पूजा-पाठ कर्मकांड और ब्रह्म वेशभूषा की निरर्थक कथा करते हुए सच्चे हृदय से राम नाम के चरण और कीर्तन का महत्व प्रतिपादित किया है क्योंकि नाम कीर्तन से ही व्यक्ति को शक की शांति मिलती है और वह इस दुख में जीवन के पार पहुंच जाता है
5.Q गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहां है
उत्तर ⇒ जो प्राणी सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित है जो मानअपमान से परे हैं हर्ष शोक दोनों से जो दूर हैं उन प्राणियों में ही ब्रह्मा का निवास बताया गया है काम, क्रोध लोभ, मोह जिसे नहीं छूते वैसे प्राणियों में निश्चित ही ब्रह्मा का निवास है।
6.Q नाम कीर्तन के आगे कभी किन कर्मों की व्यवस्था सिद्ध करता है
उत्तर ⇒ पुस्तक पाठक व्याकरण के ज्ञान का बखान दंड कमंडल धारण करना सीखा बढ़ाना तीर्थ भ्रमण जटा बढ़ाना तन में लगाना वसन हीन होकर नग्न रूप में घूमना इत्यादि कर्म कवि के अनुसार नाम कीर्तन के आगे व्यर्थ है
7.Q प्रथम पद के आधार पर बताए कि कभी कि अपने युग में धर्म साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे
उत्तर ⇒ प्रथम पद में कवि के अनुसार लिखा बढ़ाना ग्रंथों का पाठ करना व्याकरण वाचना वर्मा रमा कर साधु वेश धारण करना तीर्थ करना दंड कमंडल धारी होना वस्त्र त्याग करके नग्न रूप में घूमना कवि के युग में धर्म साधन के रूप रहे हैं
8.Q आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रसंगिकता है अपने शब्दों में विचार दें
उत्तर ⇒ नानक के पद में वर्णित राम नाम की महिमा आधुनिक जीवन में प्रसांगिक है हरि कीर्तन सरल मार्ग है जिसमें ना अत्यधिक धन की आवश्यकता है ना ही कोई ब्राह्मण अंबर कि आज भगवत नाम रूपी रस का पान किया जाए तो जीवन में उल्लास शांति परमानंद सुख तथा ईश्वर की अनुभूति को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है
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Bihar board class 10th Hindi Guru Nanak ke Doha ka mahatva perne prashn
9.Q राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा और जो नर दुख में दुख नाहीं मानै कविता का सारांश लिखें।
उत्तर ⇒ पाठ्य पुस्तक में गुरु नार्थ के दो पद संग्रहित है राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा और जोड़ना दुख में दुख नाहीं मां ने प्रथम पद के गुरु नानक ने बाहरी वेशभूषा पूजा-पाठ और कर्मकांड के स्थान पर निश्छल निर्मल हृदय से राम नाम के कीर्तन पर जोर दिया है गुरु नानक ऐसा मानते हैं कि राम नाम कीर्तन से ही व्यक्ति को अस्थाई शांति मिल सकती है और उसके सारे संसार इस दुख दर्द मिट सकते हैं दूसरे पद में गुरु नानक ने कहा है कि सुख-दुख हर्ष विषाद आदि में एक समान उदासीन रहते हुए हमें अपने मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंतःकरण को विशुद्ध और निर्मल रखना चाहिए क्योंकि इसी स्थिति में गोविंद से एकाकार होने की संभावना रहती है
गुरु नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना इस संसार में जन्म होना व्यर्थ है राम नाम की बिना हम विष खाते हैं और विष ही बोलते हैं। अर्थात राम नाम के बिना हमारा खाना जहर के समान होता है और हमारी वाणी जहर के समान होती है पुस्तक पढ़ते शास्त्रों पर चर्चा करने और संध्याकालीन उपासना करने से हमें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती राम के बिना हम विभिन्न जन जालों में उलझ कर मर जाते हैं जीवन में स्थाई शांति धार्मिक ब्राह्मडंबरो और क्रिकेटर करने से नहीं प्राप्त होती है राम नाम के जपने से ही प्राप्त होती है भवसागर पार करने का सबसे सुगम मार्ग है राम नाम का जप करना
गुरु नानक कहते हैं कि जो नर दुख में दुख नहीं मानता सुख दुख में जो उदासीन रहता है प्रीति और वह जिसके लिए एक समान है सोना और मिट्टी में जो भेद नहीं करता हर्ष और शोक जिसके लिए पृथक नहीं है वह नर गुरु की कृपा प्राप्त करता है उसे ही प्रभु के संध्या का सुख मिलता है
10.Q जो नर दुख में दुख नाही मानै पद का भावार्थ लिखें।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता में कवि ईश्वर की निर्गुण वादी सत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य दुख को दुख नहीं समझता है अर्थात दुख में जीवन में भी समान रूप में रहता है उसी का जीवन सार्थक होता है जिसके जीवन में सुख प्यार में नहीं आता है अर्थात इस परिस्थिति में भी तटस्य रहकर मानसिक दुर्गुणों को दूर करता है लोग से रहित सोने को भी माटी के समान समझता है वही प्रभु की कृपा प्राप्त कर सकता है जो मनुष्य ना किसी की निंदा करता है ना किसी की स्तुति करता है लोग मोह अभिमान से दूर रहता है ना सुख में प्रसन्नता जाहिर करता है और ना संकट में शोक उपस्थित करता है तथा मान अपमान से रहित होता है वही ईश्वर भक्ति के सुख को प्राप्त कर सकता है
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