Laut Kar Aaunga FIR Subjective Question

Laut Kar Aaunga FIR Subjective Question | कक्षा 10वीं हिंदी ‘लौटकर आउँगा फिर’ सब्जेक्टिव प्रश्न

Class 10th Hindi

Laut Kar Aaunga FIR Subjective Question:- दोस्तों यहां पर बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा के लिए हिंदी का प्रश्नावली Laut Kar Aaunga FIR Ka VVI Subjective Question दिया गया है जो मैट्रिक बोर्ड परीक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण है तो इसे शुरू से अंत तक पढ़े | कक्षा 10वीं हिंदी ‘लौटकर आउँगा फिर’ सब्जेक्टिव प्रश्न | Laut kar Aaunga Fir Hindi Ka Objective Question 


Matric Exam 2022 Laut Kar Aaunga FIR Subjective Question

1. कवि अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करता है?

उत्तर- कवि अगले जीवन में अबाबील, कौवा, हंस, उल्लू, सारस आदि बनने की संभावना व्यक्त करता है। उसे आशा है कि मनुष्य में जन्म नहीं होने पर संभवतः पक्षियों में इन्हीं रूपों में वह अवतरित होगा। कवि स्वच्छंद जीवन जीना चाहता है। अतः पक्षी जीवन को श्रेष्ठ मानता है।

2. बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन क्या है?

उत्तर- बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन हैं- नयी भावभूमि, नयी दृष्टि और नयी शैली।

3. ‘वनलता सेन’ को कब और क्यों पुरस्कृत किया गया?

उत्तर – जीवनानंद दास की काव्य-कृति ‘वनलता सेन’ को श्रेष्ठ काव्य-ग्रंथ के रूप में सन् 1952 ई० में निखिल बंग रवीन्द्र साहित्य सम्मेलन द्वारा पुरष्कृत किया गया।

4. कवि किनके बीच अंधेरे में होने की बात करता है? आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– कवि ने बंगाल में जन्म लिया है। वहाँ की सारी अच्छाइयों-बुराइयों का उसे ज्ञान है। उसे पता है कि बंगाल में जहाँ हरे-भरे खेत हैं, बलखाती नदियाँ, घने जंगल हैं, वहीं यहाँ के अधिकांश निवासी अशिक्षित हैं, अंधविश्वासों से घिरे हैं, वे गरीब हैं और उनका भरपूर शोषण होता है। यहाँ वे अंधकार में पड़े हैं। कवि चाहता है कि वे शिक्षित हों, विवेकी बनें, कोई गरीब न रहे और किसी का भी शोषण न हो अर्थात् वे अंधकार से बाहर निकलें। वह इनके बीच, यानी अंधकार में रहकर, उन्हें इस अंधकार से निकलने के लिए प्रेरित करना चाहता है, उन्हें वहाँ से निकालना चाहता है, इसीलिए उनके बीच अंधकार में रहने की बात करता है।

कक्षा 10वीं हिंदी ‘लौटकर आउँगा फिर’ सब्जेक्टिव प्रश्न

5. जीवनानंद दास ने जिस समय बाँग्ला काव्य जगत् में प्रवेश किया, उस समय क्या स्थिति थी?

उत्तर- जिस समय जीवनानंद दास ने बाँग्ला काव्य-जगत में प्रवेश किया, उस समय रवीन्द्रनाथ ठाकुर शिखर पर विराजमान थे।

6. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ में आए बिम्बों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवि जीवनानंद दास ने ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता में अपने अन्तर्द्वन्द्व की अभिव्यक्ति के लिए अनेक बिम्बों का सहारा लिया है। एक बिम्ब है धान की फसल पर सूर्योदय के पहले छाए कुहासे का, जिसके माध्यम से कवि ने मातृभूमि की समृद्धि पर कुहासा या पड़ी परत को बताया है या छिपी संभावनाओं को व्यक्त किया है। कुहासे के बीच कौवा का उड़ना उस कुहासे को चीरने का मानवीय प्रयास है। अगला बिम्ब है हंस का नदी में तैरना। उसके लाल पैर प्रेम के रंग है। अर्थात् कवि की मातृभूमि में निश्छल (हंस का सफेद रंग) प्रेम बिखरा है। एक अन्य बिम्ब है शनैः शनैः संध्या का उतरना, नाव चलना और उतरे अंधकार में कवि की उपस्थिति। यह बिम्ब है बंगाल की स्थिति का, जहाँ अशिक्षा, अंधविश्वास का अंधकार उतर आया है, फिर भी उल्लू खुश हैं; फटेहाली के गंदे पानी में लोग अपनी नाव खे रहे हैं। लेकिन नहीं, कवि वहाँ उनके बीच रहकर, लोगों को वहाँ छाए अंध कार से बाहर निकालना चाहता है। इसके लिए पुनः पुनः जन्म लेना चाहता है।

इस प्रकार कवि ने अत्यन्त सुन्दर बिम्बों की संयोजना की है। एक दिन-बंगाल में—सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

7. खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट कर

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गोधूलि’, भाग-2 में संकलित, सुप्रसिद्ध बाँग्ला कवि जीवनानंद दास की लोकप्रिय कविता ‘लौटकर आऊँगा फिर’ से उद्धृत है।

कवि इन पंक्तियों में अपनी मातृभूमि बंगाल में पुनः जन्म लेने की अदम्य इच्छा व्यक्त करता है। कवि कहता है कि वह धनखेतों से भरे बंगाल में, जहाँ नदियाँ मचलती-ठमकती बहती हैं, उन्हीं में से किसी एक नदी के किनारे, मैं अगले जन्म में लौटकर जरूर आऊँगा। वस्तुतः कवि को अपनी मातृभूमि से प्रेम है, उसके धन-खेत और वहाँ की नदियाँ खूब लुभाती रही हैं, वह इनका साथ छोड़ना नहीं चाहता। वह पुनः पुनः बंगाल में ही जन्म लेना चाहता है। कवि का मातृभूमि-स्वदेश प्रेम इन पंक्तियों में परिलक्षित होता है।

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8. बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का घुँघरू लाल पैरों में; तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की— सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश बाँग्ला कवि जीवनानंद दास की ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता से उद्धृत है। कवि को अपनी मातृभूमि से बहुत लगाव है। उसे इतनी सहानुभूति है कि अगले जन्म में भी यहीं पैदा होना चाहता मनुष्य नहीं तो पक्षी के रूप में भी कवि कहता है कि मनुष्य न होकर यदि मैं हंस बना तो किसी किशोरी का प्रेमी बनूँगा, कोई बात नहीं। कोई किशोरी हंस के रूप में तो प्यार करेगी। वही प्यारा हंस बनकर भी मुझे खुशी होगी और मैं किशोरी की आँखों के सामने, हरी घास से घिरी नदी के जल में अपने लाल-लाल, घुंघरू जैसे, पैरों से दिन-रात तैरते रहने में मुझे खुशी होगी। यहाँ कवि का निश्छल स्वदेश-प्रेम प्रतिबिंबित होता है। कवि ने प्राचीन काल की किशोरियों के पक्षी-प्रेम और पक्षी द्वारा किशोरी को अपने हाव-भाव से प्रसन्न करने के बिम्ब को यहाँ नयी भाव-भूमि दी है। दिन-भर’ में निरंतरता का भाव छलकता है। घास की गंध नयी उद्भावना है।

9. कवि जीवनानंद दास किस तरह के बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करते हैं?

उत्तर- कवि जीवनानंद दास ने बंगाल में जन्म लिया। वहीं पले, वहीं जीवन व्यतीत किया। बंगाल उनके रोम-रोम में बस गया। वे इतने अभिभूत हुए कि कहते हैं कि अगले जन्म में भी इसी धरती पर लौटकर आऊँगा। यह वह धरती है जहाँ धान के खेत-ही-खेत हैं। यहाँ की नदियाँ इस भूमि को अपने जल से धोती हैं। मुझे अत्यन्त प्रिय हैं खेत, प्रिय हैं नदियाँ, इसलिए एक दिन मैं इसी बंगाल में, यहाँ की किसी नदी के किनारे, मैं लौटकर आऊँगा, यही जन्म लूँगा।

10. ‘लौटकर आऊँगा फिर कविता का सारांश लिखते हुए कवि के मातृभूमि प्रेम पर प्रकाश डालें।

या जीवनानंद दास की ‘लौटकर आऊँगा फिर’ बंगाल के दृश्य-चित्रों और आधुनिक भाव-बोध की अनुठी कृति है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –‘ लौटकर आऊँगा फिर’ बाँग्ला के चर्चित कवि जीवनानंद दास की बहुप्रचारित और लोकप्रिय कविता है जिसमें उनका मातृभूमि प्रेम और आधुनिक भाव-बोध प्रकट होता है।

कवि कहता है कि धान की खेती वाले बंगाल में, बहती नदी के किनारे, मैं एक दिन लौटूंगा जरूर। हो सकता है, मनुष्य बनकर न लौहूँ। अबाबील या कौआ होकर, भोर की फूटती किरण के साथ धान के खेतों पर छाए कुहासे में, कटहल पेड़ की छाया तले जरूर आऊँगा। किसी किशोरी का हंस बनकर, घूँघरु-जैसे लाल-लाल पैरों से, दिन-दिन भर हरी घास की गंध वाले पानी में तैरता रहूँगा। बंगाल की मचलती नदियाँ, हरे-हरे मैदान, जिसे नदियाँ धोती हैं, बुलाएँगे और मैं आऊँगा, उन्हीं सजल नदियों के तट पर।

हो सकता है, शाम की हवा में उड़ता उल्लू दिखे या कपास के पेड़ से तुम्हें उसकी बोली सुनाई दे। हो सकता है, तुम किसी बालक को घास वाली जमीन पर मुट्ठी भर उबले चावल फेंकते देखो या फिर रूपसा नदी के मटमैले पानी में किसी लड़के को फटे-उड़ते पाल की नाव तेजी से ले जाते या रंगीन बादलों के मध्य उड़ते सारस को देखो, अंधेरे में मैं उनके बीच ही होऊँगा। तुम देखना, मैं आऊँगा जरूर।

कवि ने बंगाल का जो दृश्य-चित्र इस कविता में उतारा है, वह तो मोहक है ही और गहरी छाप छोड़ता है। इसके साथ ही कवि ने ‘अंधेरे’ में साथ होने के उल्लेख द्वारा कविता को नयी ऊँचाई दी है। यह ‘अंधेरा’ है बंगाल का दुख-दर्द, गरीबी की पीड़ा। इस परिवेश में होने की बात से यह कविता बंगाल के दृश्य-चित्रों, कवि के मातृभूमि प्रेम और मानवीय भाव-बोध की अनूठी कृति बन गई है।


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